बहराइची अनुभव

Tabrizi Faqeer
4 min readFeb 15, 2024

हाल ही मैं मैंने बहराइच भ्रमण किया, एक मित्र के भाई की शादी थी । मैं कुछ आठ दिन तक उधर रही, सौम्या (मित्र) के घर में । इन्ही दिनों बहुत सारे अनुभव साक्षात्कार किए और कई लोगों से मिलने का भी अवसर मिला। अनुभव इतना प्रभावशाली रहा की लिखने कि इच्छा उत्पन्न हुई, इसीलिए यह लेख लिख रही हूँ ।

पहले जाने का कोई प्लान नहीं था। दिसंबर में यात्रा की थी और जनवरी में भी यात्रा की थी, इसीलिए फ़रवरी में यात्रा करने की क्षमता महसूस नहीं हो रही थी — यात्राओं की शारीरिक और मानसिक थकावट थी । इसीलिए मैं सौम्या को पहले ही मना कर चुकी थी और इसीलिए मैंने जाने-आने की टिकट नहीं करायी थी। सौम्या पहले ही करा चुकी थी। फिर भी वह आख़िरी वक़्त तक बोल रही थी चलने को, लेकिन मैं ही राज़ी नहीं थी। फिर एक दिन ऐसे ही आंटी और नानी से बात होने लगी शादी को लेकर, तो उन्होंने कहा “बेटा आ जाओ”। पहले मैंने उन्हें मना किया लेकिन इतने प्रेम से वो बुला रहे थे तो फिर मैंने कहा “सोचते हैं”। फिर सोच का यह परिणाम निकला की कुछ ३-४ दिन पहले जाने के ही मैंने फिर अपनी टिकट करायीं। फिर जैसे-जैसे जाने का दिन पास आता गया, रोमांच बढ़ता ही चला गया।

सौम्या के घर जाने का रोमांच, उनके माता-पिता और परिवार से मिलने का रोमांच, बहराइच जैसे नगर को देखने का रोमांच, और शादी में नाचने का रोमांच। मैं बहुत ही ज़्यादा खुश थी और कृतज्ञ थी सौम्या और आंटी, नानी से जिन्होंने मुझे आने के बारे में सोचने को कहा।

हम दोनों ३ तारीख़ को बहराइच पहुँचे, रात में १ बजे क़रीब। अंकल आंटी, नानी, उर्वी से मिले — पानी पिया, थोड़ी-बहुत बातें की और फिर सो गये। अच्छा लगा, थोड़ा झिझक थी शुरुआत में, पहली बार मिले थे, लेकिन ज़्यादा नहीं थी। अगले दिन ४ तारीख़ थी, आराम का दिन था, ५ तारीख़ से कार्यक्रम शुरू होने थे। पहले दिन हमने घर का खाना खाया, गाना बजाना किया और ख़ूब नाचे । धीरे धीरे घुलना मिलना शुरू हुआ। आंटी के साथ नाचने का मौक़ा मिला और सौम्या की दादी, चाची, उनके बच्चों से भी मिले।

अगले दिन मेहँदी थी, सुबह से ही कार्यक्रम शुरू हुआ। मेहँदी लगाने वाला आया, साथ में ही गाना चल रहा था, और मेहँदी हर हाथ में लग रही थी। माहौल रंगीन था। मेहँदी लगवाने के लिए काफ़ी मेहमान आये, और उनसे मिलने को मिला — अच्छा था। रात को संगीत हुआ और हम सभी लोग खूब नाचे और ख़ुद को अभिव्यक्त किया। अगले दिन हल्दी थी और वह कार्यक्रम भी अच्छा गुज़रा। कार्यक्रम चल रहे थे लेकिन साथ ही साथ पहचान भी हो रही थी काफ़ी लोगों के साथ । कई नये चेहरों से मुलाक़ात हुई, और कुछ नाम जो सुने हुए थे, उनके चेहरे देखने को मिले। माहौल बेहद प्यारा, नर्म और स्नेह से परिपूर्ण लगा।

फिर अगले दिन हम लोग सुल्तानपुर बारात गये । सफ़र के दौरान हमने बहुत सारे खेल खेले, और आंटियाँ भी थी साथ में : सौम्या की मम्मी और अपर्णा मौसी। बड़ा मज़ा आया। सुल्तानपुर पहुँच के मैंने वरमाला का उत्सव देखा, अपनी एक तस्वीर खिचवाई वर-वधु के साथ और फिर सोने चली गई। काफ़ी देर हो गई थी और नींद भी आ रही थी । फिर आंटी फेरे के लिये बुलाने आयीं, थकी तो मैं बहुत थी लेकिन चली गई। बैठ गई, आधि नींद में थी समझ कुछ आ नहीं रहा था, फिर सुना पंडित जी ने कहा, “चार फेरे ही काफ़ी होते हैं”। चार फेरे हो गये थे, मेरे सामने, फिर मैंने सोचा अब चलते हैं हो गई शादी।

फिर मैं उठी और चली गई सोने । नींद न आए तो सर घूमता है। सुबह विदाई देखी, कुछ खाया नहीं लेकिन। तबियत थोड़ी ख़राब हो गई थी । तो अगले दिन पूरा व्रत रखा, Eno पी-पी कर ख़ुद को ठीक किया। रात में नानी के हाथ का प्यारा सा खाना खाया। फिर भी २ दिन लगे संपूर्ण रूप से स्वस्थ होने में।

फिर मेरे जाने का दिन निकट आने लगा। दिल में दर्द होने लगा, आँखों में नमी आने लगी, और आंटी और नानी के सामने आते-आते बचा लिया मैंने ख़ुद को। क्या सही है आँखें नम होना जब हमने कुछ पल ही बिताएँ हो साथ में, सोचा मैंने। जब हम मन्नत को छोड़ कर आए, तब नानी ने पूछा की क्या मैं भी जाऊँगी उसी दिन। मैंने कहाँ “हाँ, नानी जाएँगे “। नानी ग़ुस्सा हो गयीं, गंभीर हो गयीं, और उन्हें देख मेरी आँखों में आंसू आ गये, लेकिन मैंने उन्हें आँखों के कोनों में ही सीमित कर दिया।

और फिर मेरे भी जाने की घड़ी आ गई । गला भारी हो रहा था, इसीलिए चाह रही थी उड़ जाऊँ। कैसे देखूँ चेहरे सबके आँखों में आंसू लिये। चाचियों से सौम्या ने मिलवाया, आशीर्वाद लिया, दादी का आशीष लिया और आंटी का भी। बहुत बुरा लग रहा था, लेकिन डर भी लग रहा था, कि आँखें छलक न आयें। फिर आंटी के आँखों में अश्रु देखे, उनके चेहरे पर हाथ फेरा और ख़ुद को रोने से नियंत्रित किया। आँखों में आँसू आते हैं मेरे तो बेहद कमज़ोर महसूस करती हूँ ख़ुद को, और फिर छलक बहुत जल्दी पीड़ा बन जाती है ।

जैसे ही गाड़ी आगे बड़ी, आंसू निकल आए आँखों में जिन्हें बहुत हिम्मत से रोक के रखा था। लगाव हो गया था सबसे। अपने से हो गये थे वो सभी लोग, जिन्होंने इतना स्नेह दिया, प्रेम दिया और सराहा । काश के और वक़्त होता तो और प्रेम बाँट पाते, और ले भी पाते। बैठकर अपना दिल और बयान कर पाते। इंतज़ार रहेगा आगे आने वाली सोहबतों का ।

शुक्रिया आंटी, सौम्या , नानी इस खूबसूरत अनुभव को देने के लिए। मेरे मन में आज भी वो ख़ुशी की लौ जो आप लोगों ने ज्वलित की है, क़ायम है और मुझे उससे सौहार्द मिलती रहती है।

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